प्रस्तावना
तुलसीदास की रामचरितमानस और इसकी विशेषताएँ – भारतीय साहित्य और संस्कृति के इतिहास में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस एक अद्वितीय महाकाव्य है।

यह न केवल धार्मिक ग्रंथ के रूप में पूज्य है, बल्कि हिंदी साहित्य की सर्वोच्च कृति भी मानी जाती है। इसकी रचना 16वीं शताब्दी में अवधी भाषा में हुई, जिसमें भगवान राम की गाथा को भक्ति, नीति, और समाज के आदर्शों के साथ प्रस्तुत किया गया। यह ग्रंथ आज भी लाखों लोगों के जीवन का मार्गदर्शक है। इस लेख में हम रामचरितमानस की विशेषताओं, उसके साहित्यिक महत्व, और सामाजिक प्रभाव को विस्तार से समझेंगे।
1. तुलसीदास: जीवन और रचनात्मक पृष्ठभूमि
तुलसीदास का जन्म 1532 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में हुआ। किंवदंतियों के अनुसार, उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था। उन्होंने राम भक्ति को ही अपना जीवनाधार बनाया और काशी में संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं: रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, और हनुमान चालीसा। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अयोध्या, काशी, और चित्रकूट में की, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक प्रेरणा मिली।
2. रामचरितमानस: संरचना और विषय-वस्तु
रामचरितमानस सात कांडों में विभाजित है:
बाल कांड: राम के जन्म और बाललीलाएँ। अयोध्या कांड: राज्याभिषेक और वनवास का दुखद प्रसंग। अरण्य कांड: वन में राम, सीता, और लक्ष्मण का जीवन। किष्किंधा कांड: सुग्रीव और हनुमान से मित्रता। सुंदर कांड: हनुमान का लंका प्रवेश और सीता की खोज। लंका कांड: रावण वध और राम की विजय। उत्तर कांड: रामराज्य की स्थापना और सीता के त्याग की कथा। |
इसकी कथा वाल्मीकि रामायण पर आधारित है, लेकिन तुलसीदास ने इसमें भक्ति रस और लोक-मंगल की भावना को प्रमुखता दी।
3. भाषा और शैली की विशिष्टता (तुलसीदास की रामचरितमानस और इसकी विशेषताएँ )
अवधी भाषा का प्रयोग | तुलसीदास ने जानबूझकर संस्कृत के स्थान पर सरल अवधी को चुना, ताकि आम जनता तक रामकथा पहुँच सके। |
चौपाई और दोहा छंद | इन छंदों में लयबद्धता और संगीतात्मकता है, जो कथा को स्मरणीय बनाती है। |
“बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥”
- अलंकारों का सहज प्रयोग: उपमा, रूपक, और अनुप्रास जैसे अलंकार काव्य को सजीव बनाते हैं।
- संवाद शैली: पात्रों के बीच संवाद कथानक को गतिशील और प्रभावशाली बनाते हैं।
4. भक्ति और नीति का समन्वय
रामचरितमानस भक्ति आंदोलन की परिपक्व अभिव्यक्ति है। तुलसीदास ने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित किया, जो धर्म के पालन और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक हैं। साथ ही, इसमें जीवन के व्यावहारिक पहलू भी समाहित हैं:
सामाजिक नीति | “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” — परोपकार को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताया। |
स्त्री सम्मान | सीता की पवित्रता और साहस को उजागर किया। |
व्यक्तिगत आचरण | ईमानदारी, विनम्रता, और संयम पर बल। |
5. पात्रों का मनोवैज्ञानिक चित्रण
तुलसीदास ने पात्रों को मानवीय गुण-अवगुणों के साथ प्रस्तुत किया:
राम: आदर्श पुत्र, पति, और राजा। सीता: त्याग और धैर्य की मूर्ति, परंतु स्वाभिमानी भी। लक्ष्मण: भ्रातृभक्ति और सेवा का प्रतीक। हनुमान: भक्ति और शक्ति का संगम। रावण: विद्वान होते हुए भी अहंकारी और दुराग्रही। |
यह चित्रण पाठकों को पात्रों से जुड़ने में सहायक है।
6. दार्शनिक गहराई
रामचरितमानस सिर्फ एक कथा नहीं, बल्कि वेदांत और भक्ति दर्शन का सार है:
अद्वैत भाव | “जो जस करइ सो तस फल चाखा” कर्म के सिद्धांत को सरल ढंग से समझाया। |
भक्ति मार्ग | “भगति बिनु बंदिअछि नहिं जीवा” भक्ति को मुक्ति का साधन बताया। |
माया और मोह | रावण का पतन माया के प्रभाव को दर्शाता है। |
7. सांस्कृतिक प्रभाव और लोकप्रियता
रामलीला और गायन परंपरा | रामचरितमानस की कथाएँ भारत भर में रामलीला के माध्यम से जीवित हैं। |
नैतिक शिक्षा | परिवारों में बच्चों को मानस के दोहे सिखाए जाते हैं। |
सामाजिक एकता | सभी वर्गों और जातियों के लोग इसे समान भाव से पढ़ते हैं। |
8. आलोचनात्मक दृष्टिकोण
कुछ विद्वान तुलसीदास पर सीता के प्रति पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण (अग्निपरीक्षा) और दलितों के प्रति उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। हालाँकि, यह आलोचना तुलसी के युगीन सामाजिक संदर्भों को नजरअंदाज करती है।
9. आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता
आज के युग में जहाँ नैतिक मूल्य क्षीण हो रहे हैं, रामचरितमानस मानवीय संबंधों, वनवास प्रसंग, और न्याय के सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष
रामचरितमानस केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय जीवन दर्शन का दर्पण है। इसकी भाषा, काव्यात्मकता, और सार्वभौमिक संदेश इसे शाश्वत बनाते हैं।
तुलसीदास की यह कृति मनुष्य को आंतरिक शक्ति और नैतिक साहस प्रदान करती है, जो हर युग में प्रासंगिक रहेगी।
FAQ
1.रामचरितमानस की रचना कब हुई ? गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना साल1574 में शुरू की थी. इसे पूरा करने में उन्हें 2 साल, 7 महीने और 26 दिन लगे थे. इसे उन्होंने साल 1576 में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष के राम विवाह के दिन पूरा किया था. 2. रामचरितमानस किसकी रचना है इसकी भाषा क्या है ? रामचरितमानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में की थी. 3. रामचरितमानस में कितने कांड हैं? 7,बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड, उत्तरकांड. |
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