overall.co.in

श्रीराम और माता सीता का विवाह | The divine union of Shri Ram and Sita (7)

श्रीराम और माता सीता का विवाह: एक दिव्य मिलन – हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में वर्णित श्रीराम और माता सीता का विवाह न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि आदर्श प्रेम, समर्पण, और धर्म के मार्ग का प्रतीक भी है।

भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों में श्रीराम और माता सीता के विवाह का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं था, बल्कि यह धर्म, कर्तव्य, आदर्श और प्रेम का प्रतीक भी था।

श्रीराम और माता सीता का विवाह
श्रीराम और माता सीता का विवाह

यह विवाह त्रेता युग की वह महान गाथा है जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम राम और जनकनंदिनी सीता के चरित्र को अमर बना दिया। इस लेख में हम इस पावन विवाह के सभी पहलुओं जन्म, प्रेम, स्वयंवर, रीति-रिवाज, और उसके सांस्कृतिक प्रभाव को विस्तार से जानेंगे।

भगवान श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के घर हुआ था। राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा थीं, लेकिन उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं था। ऋषि वशिष्ठ के सुझाव पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया, जिससे उन्हें चार पुत्र प्राप्त हुए श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न।

श्रीराम माता कौशल्या के पुत्र थे और वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। वे धर्म और सत्य के प्रतीक थे और उनका जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि प्रस्तुत करता है।

श्रीराम और सीता का जन्म एवं बाल्यकाल

अयोध्या के राजकुमार: श्रीराम
श्रीराम का जन्म अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वे भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे, जो धरती पर राक्षसों के अत्याचार समाप्त करने आए।

उनके जन्म के पीछे दशरथ की संतानहीनता और ऋषि वशिष्ठ द्वारा कराए गए पुत्रकामेष्टि यज्ञ की कथा प्रसिद्ध है। यज्ञ से प्राप्त खीर को दशरथ की तीनों रानियों कौशल्या, कैकेयी, और सुमित्रा ने ग्रहण किया, जिसके फलस्वरूप राम, भरत, लक्ष्मण, और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

राम के बाल्यकाल की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं, जैसे ऋषि विश्वामित्र द्वारा ताड़का वध और अहिल्या उद्धार। इन घटनाओं ने उनके दिव्य स्वरूप को प्रकट किया।

मिथिला की राजकुमारी: सीता
सीता का जन्म मिथिला के राजा जनक और रानी सुनयना के यहाँ हुआ। उनकी उत्पत्ति का रहस्य अद्भुत है एक बार खेत जोतते समय जनक को भूमि से एक सोने की पेटी में एक शिशु मिली, जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। सीता को धरती की पुत्री भी कहा जाता है। उनके लिए “सीता” नाम संस्कृत शब्द “सीत” (हल की धार) से लिया गया, जो उनकी खोज की कहानी को दर्शाता है।

सीता ने बचपन से ही वेदों और धर्मशास्त्रों में निपुणता प्राप्त की। उनकी शिक्षा में ऋषियों का सान्निध्य और आध्यात्मिक ज्ञान समाहित था।

विवाह का पृष्ठभूमि स्वयंवर की तैयारियाँ

शिव धनुष की शर्त
राजा जनक ने सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव के धनुष (पिनाक) को धारण करने की शर्त रखी गई। यह धनुष अत्यंत भारी और दिव्य था, जिसे साधारण मनुष्य हिलाना भी दूर की बात थी। स्वयंवर में देश-विदेश के राजाओं को आमंत्रित किया गया, जिनमें रावण, परशुराम, और अयोध्या के राजकुमार भी शामिल थे।

विश्वामित्र और राम-लक्ष्मण का आगमन
ऋषि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अपने साथ मिथिला ले आए। उनका उद्देश्य राम को शिव धनुष का प्रदर्शन कराना था। मार्ग में ताड़का वध और सिद्धाश्रम में यज्ञ की रक्षा जैसी घटनाएँ राम की वीरता को उजागर कर चुकी थीं।

स्वयंवर की ऐतिहासिक घटना

धनुष भंग का चमत्कार
स्वयंवर सभा में जब राम ने धनुष को उठाया, तो उसे धारण करते हुए उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में धनुष टूट गया। यह दृश्य सभी को अचंभित कर गया। इस प्रकार, सीता ने राम को वरमाला पहनाई, और दोनों का विवाह तय हुआ।

माता सीता के विवाह के लिए राजा जनक ने एक स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में शर्त रखी गई थी कि जो भी राजकुमार भगवान शिव के धनुष को उठाकर उसे प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही सीता से विवाह करेगा। यह शिवधनुष बहुत भारी था और इसे कोई भी आसानी से उठा नहीं सकता था।

स्वयंवर में अनेक राजा और राजकुमार आए, लेकिन कोई भी शिवधनुष को हिला तक नहीं पाया। तभी महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम को आदेश दिया कि वे धनुष उठाएँ। श्रीराम ने बड़ी सहजता से धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते ही वह दो टुकड़ों में टूट गया।

यह देखकर सभी राजा चकित रह गए और मिथिला नगरी में आनंद छा गया। राजा जनक ने प्रसन्न होकर श्रीराम और माता सीता के विवाह की घोषणा कर दी।

चारों भाइयों का विवाह
राम-सीता के साथ-साथ, लक्ष्मण का विवाह सीता की बहन उर्मिला से, भरत का मांडवी से, और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से हुआ। इस प्रकार, अयोध्या और मिथिला के बीच रिश्तों की नींव मजबूत हुई।

विवाह समारोह संस्कार और रीति-रिवाज

वैदिक रीति से विधिवत् कर्म
विवाह के अवसर पर राजा जनक और दशरथ ने वैदिक मंत्रों के साथ कन्यादान किया। मुख्य संस्कारों में मंगलास्नान, वरमाला, होम, और सप्तपदी शामिल थे। ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने अनुष्ठानों का नेतृत्व किया।

देवताओं की उपस्थिति
पुराणों के अनुसार, इस विवाह में देवता गुप्त रूप से उपस्थित हुए। उन्होंने राम और सीता को आशीर्वाद दिया और उनके मिलन को अटल रहने की प्रार्थना की।

विवाह का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

धार्मिक महत्व

  • श्रीराम और माता सीता का विवाह हमें धर्म, निष्ठा, प्रेम और आदर्शों का पालन करना सिखाता है।
  • यह विवाह यह भी दर्शाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता एक-दूसरे के पूरक थे और उनके संबंध में केवल प्रेम ही नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा भी थी।

सांस्कृतिक महत्व

  • सात फेरे और विवाह के दौरान लिए गए संकल्पों की महत्ता को इस विवाह कथा से समझा जाता है।
  • भारतीय विवाह परंपरा में श्रीराम और माता सीता के विवाह को आदर्श माना जाता है।
  • आज भी भारतीय संस्कृति में कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना जाता है, जिसका प्रेरणा स्रोत राजा जनक का सीता का कन्यादान है।

निष्कर्ष

श्रीराम और सीता का विवाह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों की स्थापना है। यह संबंध आज भी प्रेम, साहस, और धर्मपरायणता की प्रेरणा देता है। जैसे सीता ने कहा था “यत्र त्वं तत्र अहम्” (जहाँ तुम, वहाँ मैं) वह भावना आज भी प्रासंगिक है।

श्रीराम और माता सीता का विवाह केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि भारतीय समाज की नैतिकता और मूल्यों का प्रतीक है। यह विवाह न केवल पति-पत्नी के प्रेम और आदर्शों को दर्शाता है, बल्कि पारिवारिक कर्तव्यों और सामाजिक मर्यादाओं की भी शिक्षा देता है।

भगवान श्रीराम और माता सीता का पवित्र मिलन हमें यह सिखाता है कि जीवन में सच्चा प्रेम, त्याग और समर्पण का क्या महत्व है। उनका विवाह केवल एक युगल का संयोग नहीं था, बल्कि यह धर्म और मर्यादा की स्थापना का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय था, जो युगों-युगों तक प्रेरणास्रोत बना रहेगा।

FAQ
1. भगवान राम और सीता जी का विवाह कब हुआ था?मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था. इसलिए हर साल इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
2. मृत्यु के समय राम की उम्र कितनी थी?भगवान राम की मृत्यु की सही तारीख कोई नहीं जानता। हालांकि पौराणिक कथाओं के अनुसार राम ने 70 वर्ष की आयु में सरयू नदी में जल समाधि ले ली थी
3. राम की असली माँ का नाम क्या है?रामायण के अनुसार, राम का जन्म दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या के घर अयोध्या में हुआ था, जो कोसल राज्य की राजधानी थी।

Read More

यह है संक्षेप में श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा

विभिन्न भाषाओं में रामायण के अनुवाद

Leave a Comment