यह है संक्षेप में श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा – भारतीय संस्कृति और धर्म के आराध्य देवता भगवान श्रीराम का नाम सनातन धर्म के हृदय में अमिट है। उनका जीवन मर्यादा, कर्तव्य, और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

रामायण महाकाव्य में वर्णित उनके जन्म और बाल्यकाल की कथाएँ न केवल आस्था का विषय हैं, बल्कि मानवीय मूल्यों की शिक्षा भी देती हैं। यह लेख श्रीराम के अवतरण से लेकर उनके बचपन तक की घटनाओं को विस्तार से प्रस्तुत करेगा।
अयोध्या: वह नगरी जहाँ जन्मे राम
श्रीराम का जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ, जिसे “साकेत” या “रामनगरी” भी कहा जाता है। अयोध्या की महिमा वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार वर्णित है:
“अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता। स्वर्गादपि गरीयसी सा मनुना मानवेन्द्रणा॥”
अर्थात, “अयोध्या नामक वह नगरी संसार में प्रसिद्ध थी। मनु जैसे महान राजा द्वारा बसाई गई यह नगरी स्वर्ग से भी श्रेष्ठ थी।”
राजा दशरथ, इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी शासक, अयोध्या के सिंहासन पर विराजमान थे। उनकी तीन रानियाँ थीं: कौशल्या, कैकेयी, और सुमित्रा। परंतु संतानहीनता के कारण वे दुखी थे। ऋषि वशिष्ठ के परामर्श पर दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन किया, जिसे महर्षि ऋष्यशृंग ने संपन्न कराया।
यज्ञ का चमत्कार: प्रसाद से जन्मा अवतार
यज्ञ की समाप्ति पर अग्निदेव ने दशरथ को एक दिव्य खीर (पायस) दिया, जिसे उन्होंने तीनों रानियों में बाँट दिया। कौशल्या को आधा, कैकेयी को एक-चौथाई, और सुमित्रा को शेष भाग मिला। परंतु सुमित्रा ने अपना हिस्सा कौशल्या और कैकेयी के साथ साझा कर दिया। इस प्रकार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी (रामनवमी) को:
- कौशल्या के गर्भ से राम (विष्णु के अवतार),
- कैकेयी से भरत,
- सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
जन्म के समय आकाशवाणी हुई:
“हे दशरथ! तुम्हारे यहाँ स्वयं भगवान विष्णु ने मनुष्य रूप में जन्म लिया है। यह बालक सभी दुखों का नाश करेगा और धर्म की स्थापना करेगा।”
अयोध्या का उल्लास: प्रजा की आस्था (यह है संक्षेप में श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा)
राम के जन्म पर अयोध्या में उत्सव छा गया। घर-घर में दीपक जले, मंदिरों में घंटियाँ बजीं, और गलियों में मिठाइयाँ बाँटी गईं। दशरथ ने नगरवासियों को सोना और वस्त्र दान किए। बालक राम की मनमोहक छवि देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए। कौशल्या ने उन्हें गोद में लेकर लोरी सुनाई:
“सो जा रे लालना, तेरा पालना स्वर्ण का हो। तेरे लिए यह संसार, धर्म का धाम हो॥”
(भाग 2: बाल लीलाएँ और शिक्षा)
चारों भाइयों की मित्रता
राम, लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न अविभाज्य थे। लक्ष्मण राम के प्रति विशेष अनुरक्त थे। वाल्मीकि रामायण में वर्णन है:
“लक्ष्मणो लक्ष्मणवतीं निद्रां त्यक्त्वा सहोदरम्। रामं दृष्ट्वैव हृष्टात्मा तस्थौ चानुचरन् सदा॥”
अर्थात, “लक्ष्मण ने राम के साथ रहने के लिए निद्रा और सुख का त्याग कर दिया।”
एक बार खेलते समय राम ने लक्ष्मण को काला नाग दिखा दिया, तो वे रोने लगे। राम ने उन्हें गले लगाकर कहा, “डरो मत, मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा।” यह दृश्य देखकर दशरथ की आँखें नम हो गईं।
गुरुकुल में शिक्षा
राम और उनके भाइयों ने गुरु वशिष्ठ के आश्रम में वेद, धनुर्विद्या, और नीतिशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। राम जिज्ञासु और मेधावी थे। एक दिन उन्होंने गुरु से पूछा, “सच्चा राजा कैसा होता है?” गुरु ने उत्तर दिया, “जो प्रजा को पुत्र समान माने, उसी का राज्य स्थिर रहता है।”
विश्वामित्र के साथ यज्ञ-रक्षा
जब राम १२ वर्ष के हुए, तब ऋषि विश्वामित्र उन्हें यज्ञ की रक्षा के लिए ले गए। मार्ग में ताड़का नामक राक्षसी ने आक्रमण किया। राम ने धनुष उठाकर उसका वध किया। फिर अहिल्या का उद्धार किया, जो गौतम ऋषि के शाप से पत्थर बन गई थी। विश्वामित्र ने राम को दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए।
सरलता और करुणा
राम सभी प्राणियों से प्रेम करते थे। एक बार उन्होंने एक घायल गिलहरी को देखा तो उसके घाव पर पत्ती लगाकर उसे जल दिया। गिलहरी ने कृतज्ञता में पीठ पर धारियाँ बना दीं, जो आज भी गिलहरियों में दिखती हैं।
बचपन की अद्भुत घटनाएँ
भगवान श्रीराम का बचपन अत्यंत अद्भुत और शिक्षाप्रद रहा। उनके शैशव काल से ही उनमें दिव्यता के लक्षण दिखने लगे थे।
बालक श्रीराम का स्वभाव
श्रीराम बचपन से ही अत्यंत शांत, सौम्य और धैर्यवान थे। वे माता-पिता और गुरुजनों की आज्ञा का पालन करने वाले, सत्यवादी और करुणा से भरे हुए थे।
ताड़का वध
जब श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ गए, तब उन्होंने ताड़का नामक राक्षसी का वध किया। यह उनकी पहली वीरता की परीक्षा थी।
मिथिला गमन और शिवधनुष भंग
भगवान श्रीराम अपने गुरु के साथ मिथिला पहुंचे, जहाँ उन्होंने जनकनंदिनी सीता के स्वयंवर में भाग लिया। उन्होंने शिवजी के धनुष को उठाकर तोड़ दिया, जिससे उनका विवाह माता सीता से हुआ।
संस्कृति में प्रभाव
रामनवमी पर उनके जन्मोत्सव को भक्ति और उल्लास से मनाया जाता है। बाल राम की छवि मंदिरों में “लड्डू गोपाल” के रूप में पूजी जाती है। उनकी बाल लीलाएँ भरतनाट्यम और कथकली नृत्यों में प्रस्तुत की जाती हैं।
निष्कर्ष:
श्रीराम का बचपन सादगी, साहस, और संस्कारों का संगम था। उनकी लीलाएँ मानव को आदर्श जीवन की प्रेरणा देती हैं। आज भी लाखों बच्चे “राम” नाम धारण करके उनके मार्ग पर चलते हैं, यही उनकी अमर विरासत है।
FAQ
1. भगवान श्रीराम का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
चैत्र कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि के दिन सरयू नदी के किनारे बसी अयोध्यापुरी में राजा दशरथ के घर में भगवान श्री राम का जन्म हुआ था।
2. मृत्यु के समय राम की उम्र कितनी थी?
भगवान राम ने 70 की उम्र तक शासन चलाया और इसके बाद राम ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था।
3. राम जी के मामा जी का नाम क्या था?
भगवान राम के मामाजी का नाम ‘महा ऋषि वशिष्ठ‘ था। वे भगवान राम के माता के भाई थे।